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Thursday, 7 January 2021

64 दिन में भी जनता के फैसले को नहीं माने ट्रम्प, इस वाद-विवाद और बवाल को 5 बातों से समझिए

अमेरिका में बुधवार को जो कुछ हुआ उसे उपराष्ट्रपति माइक पेंस ने ‘देश के लोकतांत्रिक इतिहास का काला दिन’ करार दिया। यह तो तय है कि राष्ट्रपति डेमोक्रेट पार्टी के जो बाइडेन ही बनेंगे। मोटे तौर पर देखें तो बाइडेन की जीत 3 नवंबर को चुनाव वाले दिन ही तय हो गई थी। 14 नवंबर को इलेक्टोरल कॉलेज की वोटिंग के बाद इस पर एक और मुहर लगी। 6 नवंबर को बाइडेन की जीत की संवैधानिक पुष्टि होनी थी। ऐसे में सवाल यह कि जब सब तय था तो बवाल क्यों हुआ? आखिर दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र कलंकित क्यों हुआ? इसका एक ही जवाब है- डोनाल्ड ट्रम्प की जिद।

यहां हम आपको बिल्कुल आसान भाषा में इस विवाद को समझाने की कोशिश कर रहे हैं।

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चुनाव से पहले
राष्ट्रपति ट्रम्प रिपब्लिकन और बाइडेन डेमोक्रेट पार्टी के कैंडिडेट थे। कोरोनावायरस को संभालने में ट्रम्प की नाकामी मुख्य मुद्दा बनी। ट्रम्प महामारी को मामूली फ्लू तो कभी चीनी वायरस बताते रहे। 3 लाख से ज्यादा अमेरिकी मारे गए। लाखों बेरोजगार हो गए। अर्थव्यवस्था चौपट होने लगी। ट्रम्प श्वेतों को बरगलाकर चुनाव जीतना चाहते थे। क्योंकि, अश्वेत भेदभाव का आरोप लगाकर उनसे पहले ही दूर हो चुके थे।

काश, इशारा समझ लेते
3 नवंबर को चुनाव हुआ। अमेरिका में जनता इलेक्टर्स को चुनती है और इलेक्टर्स राष्ट्रपति को चुनते हैं। इनके कुल 538 वोट होते हैं। राष्ट्रपति बनने के लिए 270 वोटों की दरकार होती है। 3 नवंबर को ही साफ हो गया था कि बाइडेन को 306, जबकि ट्रम्प को 232 वोट मिले। यानी ट्रम्प हार चुके हैं। चुनाव के पहले ही ट्रम्प ने साफ कर दिया था कि वे हारे तो नतीजों को स्वीकार नहीं करेंगे। अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियां शायद उनका इशारा समझ नहीं पाईं। क्योंकि, अगर समझी होतीं तो बुधवार की घटना टाली जा सकती थी। संसद के बाहर लोग जुट ही नहीं सकते थे।

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बुधवार को होना क्या था
अगर तकनीकी बातों में न उलझें तो सीधा सा जवाब है- बाइडेन की जीत पर संवैधानिक मुहर लगनी थी। संसद के दोनों सदनों के सामने इलेक्टर्स के वोट्स की गिनती होनी थी। यहां एक छोटी से बात और समझ लीजिए। अमेरिका में चुनाव के बाद नतीजों को अदालतों में चुनौती दी जा सकती है। लेकिन, वहां इनका निपटारा 6 जनवरी के पहले यानी संसद के संयुक्त सत्र के पहले होना चाहिए। यही हुआ भी। फिर, संसद बैठी। उसने चार मेंबर्स चुने। ये हर इलेक्टर का नाम लेकर यह बता रहे थे कि उसने वोट ट्रम्प को दिया या बाइडेन को।

तो दिक्कत क्यों हुई
इसका भी आसान जवाब है। बवाल इसलिए हुआ क्योंकि ट्रम्प समर्थकों को भड़का रहे थे। वे नहीं चाहते थे कि इलेक्टोरल कॉलेज, यानी इलेक्टर्स के वोटों की गिनती हो। दूसरे शब्दों में कहें तो ट्रम्प नहीं चाहते थे कि संसद बाइडेन के 20 जनवरी के शपथ ग्रहण समारोह को हरी झंडी दे। ट्रम्प ने सोशल मीडिया पर भड़काऊ बयान दिए। समर्थक भड़क गए। संसद में हंगामा हुआ और एक महिला की मौत हो गई। संसद में इलेक्टर्स के वोट्स की जगह रिवॉल्वर नजर आई।

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अब आगे क्या होगा
फिलहाल, इलेक्टोरल कॉलेज के वोटों की गिनती जारी है। इसमें कई घंटे लग सकते हैं। ज्यादा वक्त लगने की वजह यह है कि कुछ वोटों को लेकर ट्रम्प की पार्टी के समर्थक आपत्ति दर्ज करा सकते हैं। इनको क्लियर करने की तय प्रक्रिया है और इसी वजह से संसद को समय लगता है। बहरहाल, प्रॉसेस खत्म होने के बाद बाइडेन को विनर सर्टिफिकेट जारी किया जाएगा। 20 जनवरी को वे संसद की शपथ लेंगे। संसद उनके कैबिनेट मेंबर्स के नाम को जांच के बाद अप्रूवल देगी। इस दौरान ट्रम्प को व्हाइट हाउस छोड़ना होगा। अगर वे ऐसा नहीं करते तो सुरक्षा बल उन्हें वहां से निकाल सकते हैं।



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ये किसी आतंकी हमले के दौरान की फोटो नहीं है। आप दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र अमेरिका के संसद भवन की तस्वीर देख रहे हैं। जमीन पर लेटे वे ट्रम्प समर्थक हुड़दंगी हैं। इनके पास मिलिट्री के स्पेशल गार्ड्स खड़े हैं।


source https://www.bhaskar.com/international/news/us-washington-dc-violence-latest-news-donald-trump-cant-accept-defeat-and-what-means-for-america-128097268.html

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posted by dpsnews24daily

October 24, 2024

via https://www.youtube.com/watch?v=Y2vH1NUzq_E